Wednesday, September 12, 2018

भारत का विकल्प बना चीन?

कॉर्नेगी इंडिया के एनलिस्ट कॉन्स्टैन्टिनो ज़ेवियर ने वॉशिंगटन पोस्ट से कहा है, ''नेपाल और चीन की क़रीबी एक बड़ा परिवर्तन है. यह नेपाल के इतिहास में पहली बार है कि चीन नेपाल को भारत का विकल्प मुहैया करा रहा है.''
नेपाल मामलों के जानकार आनंदस्वरूप वर्मा कहते हैं, ''जिस तरह भारत में राष्ट्रवाद की बात होती है तो पाकिस्तान विरोध केंद्र में आ जाता है. उसी तरह अब नेपाल में चुनावों के दौ
शीत युद्ध के बाद यह पहली मौक़ा है जब रूस बड़े पैमाने पर क़रीब तीन लाख सैनिकों के साथ सैन्य अभ्यास कर रहा है. पूर्वी साइबेरिया में किए जा रहे इस सैन्य अभ्यास को 'वोस्टोक-2018' का नाम दिया गया है.
इसमें चीन के 3200 सैनिक भी शामिल हो रहे हैं. इतना ही नहीं, अभ्यास में चीन कुछ बख़्तरबंद वाहन और एयरक्राफ्ट भी हिस्सा बन रहे हैं.
कुछ इसी तरह का अभ्यास शीत युद्ध के दौरान साल 1981 में किया गया था, लेकिन वोस्टोक-2018 में उससे कहीं अधिक सैनिक शामिल हैं.
एक सप्ताह तक चलने वाला यह युद्धाभ्यास ऐसे वक़्त में हो रहा है जब नैटो और रूस के बीत मतभेद अपने चरम पर हैं.
युद्धाभ्यास शुरू होने के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग से मुलाक़ात की और कहा, "राजनीति, सुरक्षा और सैन्य क्षेत्र में हमारा रिश्ता भरोसेमंद है."ल 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्ज़े के बाद नैटो से उसके रिश्ते ख़राब हुए हैं. नैटो 29 देशों का साझा सैन्य संगठन है और यह माना जाता है कि इसमें अमरीका का वर्चस्व है.
रूसी सरकार के प्रवक्ता दमित्री पेसकोव ने इस अभ्यास को जायज़ बताया है.
मंगलवार और बुधवार को अभ्यास की योजना बनाई जाएगी और दूसरी तैयारियां होंगी. वास्तविक जंगी कार्रवाई गुरुवार से शुरू होगी और पांच दिनों तक चलेगी.
रूस के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि अभ्यास में 36 हज़ार बख़्तरबंद वाहन, टैंक, सैन्य हथियार वाहक आदि शामिल होंगे.
11 से 17 सितंबर तक होने वाले अभ्यास में इनके अलावा एक हज़ार एयरक्राफ्ट के साथ शक्ति प्रदर्शन भी किया जाएगा.
पूरा अभ्यास पांच सैन्य प्रशिक्षण क्षेत्रों, चार एयरबेस, जापान सागर और कुछ अन्य जगहों पर किया जाएगा. इसमें नौसेना के 80 जहाज़ हिस्सा लेंगे.
रूस का कहना है कि जापान के उत्तर में विवादित दीप कुरिल पर अभ्यास नहीं किया जाएगा.
पिछले साल भी रूस ने बेलारुस के साथ मिल कर सैन्य अभ्यास किया था.
चीन के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इससे दोनों देशों के बीच सैन्य साझेदारी बढ़ेगी और इससे उनकी ताक़त में इज़ाफ़ा भी होगा. विपरीत परिस्थितियों में दोनों देश मिलकर ख़तरे को चुनौती दे सकते हैं.
मंगोलिया ने इस युद्ध अभ्यास में शामिल होने से जुड़ी कोई अग्रिम जानकारी अभी तक नहीं दी है.
रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु कहते हैं कि मध्य एशिया में इस्लामिक चरमपंथ रूस की सुरक्षा के लिए एक बड़ा ख़तरा है.
चीन ने मुस्लिम बहुल इलाक़े शिनजियांग क्षेत्र में कड़ी सुरक्षा और सेंसरशिप लगाई है.
इस इलाक़े में हाल के सालों में कई हिंसक घटनाएं देखने को मिली हैं और चीन का आरोप है कि इस्लामिक चरमपंथी और अलगाववादी इलाक़े में समस्याएं पैदा कर रहे हैं.
हाल के सालों में रूस और चीन के बीच सैन्य रिश्ते बेहतर हुए हैं और इन अभ्यासों के दौरान उनके पास एक संयुक्त क्षेत्रीय मुख्यालय भी होगा.
जानकार मानते हैं कि रूस और चीन का इस तरह एक-दूसरे के क़रीब आना अमरीका के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव से निपटने का एक तरीका है. या यूं कहें कि दोनों देश आंशिक रूप से ही सही मगर क़रीब आकर अमरीका के प्रभाव का तोड़ खोजने की कोशिश कर रहे हैं.
दोनों मुल्कों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ रहा है. चीन की सरकारी न्यूज़ एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक़, चीन ने साल 2017 में ही अपने प्रत्यक्ष निवेश में 72 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा किया है.
चीन और अमरीका के बीच व्यापारिक संबंधों में काफ़ी तनाव पैदा हो गया है इसी बीच रूस एक महत्वपूर्ण ट्रेड पार्टनर के रूप में सामने आया है.
मौजूदा समय में चीन को सबसे ज़्यादा तेल रूस से ही मिलता है और रूस की सबसे बड़ी ऊर्जा कंपनी गाज़प्रोम तीन हज़ार किलोमीटर की गैस पाइपलाइन का निर्माण कर रही है जो पूर्वी साइबेरिया को चीनी सीमा से जोड़ेगी.
रूस के राष्ट्रपति पुतिन और शी जिनपिंग की जून में हुई मुलाक़ात भी काफ़ी अच्छी रही थी. शी जिनपिंग ने तो रूस के राष्ट्रपति को अपना सबसे अच्छा और सबसे गहरा दोस्त भी बताया था.
शीत युद्ध के दौरान की परिस्थितियों और आज की परिस्थितियों में ज़मीन-आसमान का अंतर है. एक वो वक़्त भी था जब चीन और तब के सोवियत संघ के बीच वैश्विक स्तर पर कम्युनिस्ट नेतृत्व और पूर्वी सीमाओं के विस्तार को लेकर संघर्ष चल रहा था.
रान हो रहा है. ऐसी स्थिति भारत ने ही पैदा की है. भारत 2015 में नाकाबंदी कर वहां के नागरिकों को भी अपने ख़िलाफ़ भावना रखने पर मजबूर किया है. नेपाल भारत का विरोध कर ख़ुद को आगे नहीं बढ़ा सकता है, लेकिन दुर्भाग्य से भारत के साथ ऐसा नहीं है कि वो भी सोच ले कि उसके अलावा नेपाल के पास कोई विकल्प नहीं है. भारत के साथ सांस्कृतिक, धार्मिक और कई तरह की बेशुमार समानता हैं, लेकिन वो इस मौक़े को भुना नहीं पाया. नेपाल में भारत ने ख़ुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है.''
वो कहते हैं, ''भारत सैकडों सालों तक उपनिवेश रहा है, लेकिन नेपाल कभी किसी का उपनिवेश नहीं रहा. भारत में औपनिवेशिक मानसिकता केवल यहां की राजनीति में ही नहीं है बल्कि समाज और बुद्धिजीवियों में भी दिखती है. हमें नेपाल का गार्ड मंजूर है, नौकर मंजूर है पर एक संप्रभु देश मंजूर नहीं है. 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के बाद 1964 में चीन ने काठमांडू को कोदारी राजमार्ग से जोड़ा था. इसे लेकर भारत की संसद में काफ़ी तीखी बहस हुई थी. कहा जाने लगा कि चीन गोरखपुर तक पहुंच जाएगा. हालांकि ऐसा नहीं हुआ.''
वो कहते हैं, ''आख़िर एक संप्रभु देश दूसरे देश से अपने हित में संबंध क्यों नहीं बना सकता और वो भी तब जब आप उसके हितों का ख़्याल नहीं रख रहे हैं. 1950 में भारत ने जो नेपाल से पीस एंड फ्रेंडशिप संधि की थी उसे लेकर नेपाल में अब आवाज़ उठ रही है. वो संधि तब हुई थी जब नेपाल में राणाशाही थी. अगर लोकतांत्रिक नेपाल आपसे इस संधि पर बातचीत करना चाहता है तो आपको करना होगा.''

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