Friday, June 28, 2019

मुज़फ़्फ़रपुर में नरकंकाल पर कोहराम, क्या कहती है जाँच रिपोर्ट?

मुज़फ़्फ़रपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल में चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों का इलाज चल रहा है, इसी अस्पताल के पीछे वन क्षेत्र वाले हिस्से में शनिवार को नरकंकालों का ढ़ेर मिलने से सनसनी फैल गई थी.
मामला इतना गंभीर बन गया था कि स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल सेक्रेटरी कौशल किशोर ने अस्पताल प्रशासन को तत्काल तलब किया और जांच के आदेश दे दिए.
अस्पताल प्रबंधन और जिला प्रशासन ने उस समय कहा था कि मिले नरकंकाल उन 19 लावारिस लाशों के हैं, जिनकी सामूहिक अंत्येष्टि 17 जून को उस स्थान पर की गई थी.
बाद में सवाल यह भी उठे कि चूंकि वह इलाका अस्पताल परिसर के अंदर आता है, इसलिए वहां शवों को नहीं जलाया जा सकता.
कई मीडिया चैनलों पर ऐसी भी खबरें चलीं कि मुख्यमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य के एसकेसीएचएम के दौरे से ठीक पहले लाशों को ठिकाने लगाने के लिए परिसर में आनन फानन में जला दिया गया.
लेकिन इस मामले में जो नई खबरें निकलकर आ रही हैं वो और भी चौंका देने वाली है.
गुरुवार को मुज़फ़्फ़रपुर के सभी शीर्ष स्थानीय अखबारों में यह खबर है कि नरकंकाल मामले में गठित जांच दल ने अपनी रिपोर्ट डीएम को सौंप दी है. और उस रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि वहां से कुल 70 नरमुंड तथा कंकाल बरामद किए गए थे.
जबकि अस्पताल प्रबंधन शुरू से यह कहता आ रहा है कि उस जगह पर 19 शवों के ही नरकंकाल थे. बीबीसी ने मुजफ्फरपुर के डीएम से भी जब नरमुंडों और कंकालों की संख्या को लेकर सवाल किया था तब उन्होंने यही कहा था कि नरकंकाल उन 19 लावारिस लाशों के हैं, जिन्हें हाल ही में जलाया गया था.
बीबीसी ने मुज़फ़्फ़रपुर के डीएम अलोक रंजन घोष से बात की और पूछा कि क्या अखबारों में जो छपा है वो सच है? क्या वाकई 70 नरमुंड और कंकाल उस क्षेत्र से बरामद हुए?
डीएम ने कहा कि, "ऐसी कोई रिपोर्ट अभी तक हमारे पास नहीं आई है. मैं तब तक कुछ नहीं कहता हूँ जब तक आधिकारिक तौर पर कुछ पता नहीं चलता! न्यूज छापने की होड़ में खबर की एक जांच तक करने की ज़हमत नहीं उठाते हैं लोग. हो सकता है कि खबर सही भी हो, पर मेरे पास इस तरह के आंकडों की जानकारी नहीं है."
चूंकि मामला अस्पताल से जुड़ा है जहां अभी चमकी से पीड़ित सैकड़ों बच्चों का इलाज ज़ारी है. इसलिए हमनें अस्पताल प्रबंधन से भी बात की .
अस्पताल अधीक्षक डॉ एसके शाही ने नरकंकालों के मसले पर कुछ भी बोलने से यह कहकर इनकार कर दिया कि पोस्टमार्टम संबंधी काम कॉलेज का है, उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. इसलिए कॉलेज के प्रिंसिपल से इस पर जवाब लिया जाए.
हमनें श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ विकास कुमार से भी बात की. उन्होंने भी इस तरह के किसी रिपोर्ट के आने से इनकार कर दिया.
वो कहते हैं "इस मामले में एक नहीं बल्कि दो जांच कमेटी का गठन किया गया था. एक तो विभाग द्वारा किया ही गया था, दूसरा कॉलेज प्रबंधन ने अपनी एक आंतरिक कमिटी भी बनाई है. दोनों में से किसी की जांच अभी तक पूरी नहीं हो पायी है. रिपोर्ट आनी अभी शेष है "
हालांकि, डॉ विकास ने अखबारों में छपी खबरों की तर्ज पर ही यह जरूर कहा कि," हमारे अभी तक कि जांच में यह निकल कर आया है कि पिछले तीन सालों से उस जगह पर अंत्येष्टि का काम किया जाता था. कोई उन नरकंकालों को गिन कैसे सकता है! सब जल चुके हैं. जो बचे हैं उन्हें आप अवशेष कह सकते हैं."
इसमें कोई दो राय नहीं कि अस्पताल के बगल से नरकंकाल मिलने के मामले में कोई आधिकारिक रूप से कुछ भी कहने से बच रहा है. अखबार के पन्नों में 70 नरमुंडो के मिलने की सुर्खियां छपी हैं, लेकिन प्रबंधन और प्रशासन सही नंबर बताने से बच रहे हैं.
जैसा कि अखबार लिखते हैं और अस्पताल प्रबंधन दावा करता है कि उस जगह पर पिछले तीन सालों से लावारिस लाशें जलायी जा रही हैं? लेकिन एक बार भी प्रबंधन ने इसे लेकर कार्रवाई नहीं की!
क्योंकि असल सवाल तो यही उठा था कि आखिर अस्पताल परिसर में लाश केसे जलाई जा सकती है?
कॉलेज के प्राचार्य डॉ विकास उस जमीन को अस्पताल का परिसर मानने से ही इनकार करते हैं. वो कहते हैं, "वो जमीन अब टाटा कैंसर इंस्टिट्यूट को हस्तांरित की जा चुकी है. इसके कागज भी हैं और पहले भी वो ज़मीन अस्पताल परिसर के अंतर्गत नहीं आता था, कॉलेज परिसर के वन क्षेत्र का हिस्सा है."
साफ है कि अस्पताल के बगल से नरकंकालों की बरामदगी के मसले पर अस्पताल प्रबंधन और जिला प्रशासन स्पष्ट रूप से कुछ भी कहने से बच रहे हैं.
लेकिन दो-तीन दिनों में जैसा कि प्रिंसिपल डॉ विकास भी कहते हैं मामले की जांच रिपोर्ट आ जाएगी तब तस्वीर साफ होगी कि आखिर कितने नरकंकालों की बरामदगी हुई है और ऐसी जगह पर शवों को जलाने वालों पर क्या कार्रवाई होती है.
बहरहाल मामला और भी गंभीर बनता जा रहा है. क्योंकि इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन द्वारा पिछले दिनों अस्पताल में किए दौरों से से भी जोड़ कर देखा जाने लगा है.
विपक्षी नेता यह कहकर सरकार पर हमला बोल रहे हैं कि मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के दौरों को देखते हुए लाशों को आनन फानन में इसलिए जला दिया गया ताकि अस्पताल की बदहाली सामने न आए. जब पकड़े गए तो बाद में उन्हें लावारिस बताकर मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है.

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