Friday, May 31, 2019

شهر رمضان على إنستغرام: قروض واستئجار مجوهرات وعزائم فاخرة وفلتر صور

منذ زمن ليس بالقريب علت أصوات منتقدة للإسراف بالطعام في شهر رمضان، لكن يبدو أن تطبيق إنستغرام أضاف عبئا جديدا على بعض الناس في دول الخليج.
منار الهنائي، وهي رئيسة تحرير مجلّة سكة ورائدة أعمال إماراتية، تكتب عما شاهدته شخصيا أثناء إحدى السهرات الرمضانية التي دُعيت إليها.
يمثّل رمضان بالنسبة لي فرصة للالتقاء بزميلات شغلتني عنهن مهام عملي طوال العام. وكانت وليمة سارة (اسم مستعار) للسحور أولى المناسبات التي أحضرها هذا الشهر.
حملت كل من المدعوات في ذلك المساء طبقا أعدته، ليضفنه لبوفيه الطعام المكوّن من كل ما لذ وطاب.
كانت سارة قد أعدّت الطعام وأوصت به من مطاعم مختلفة من دبي وأبو ظبي٬ ولم يكن ذلك كل شيء؛ فهناك عربة للمثلجات والكنافة.
كنا نأكل وعازفة عود تُطربنا بألحان لأغاني فيروز ومحمد عبده.
وما أن جلسنا في خيمتها الرمضانية الزجاجية التي تنصبها كل عام في حديقة منزلها، والتي تزيّنت بالشموع ورائحة الورود الطبيعية التي ملأت المكان٬ حتى بدأت المدعوات بتوثيق السهرة والتقاط صور لتحضيرات الطعام٬ وديكورات الخيمة٬ وأزياءهن الخاصة بالمناسبة ومشاركتهن مع متابعينهن على صفحات الانستغرام وسناب شات.
"لحظة٬ لحظة!" أوقفتنا سارة. "أوصيتُ مصممة لتصميم فلتر خاص لليلة٬ لا تنسين استخدامه في سناب شات!"
"لن نستطيع أن ننافسك في أي مناسبة في رمضان"، أخبرتها إحدى الصديقات مادحة تفاصيل تلك المناسبة الراقية.
في طريق عودتي للمنزل٬ أخبرتني زميلتي بأنها قررت ألا تقيم مأدبة سحور لهذا العام لأنها لن تستطيع أن تواكب التحضيرات للولائم الرمضانية التي تقيمها بعض النساء من محيطها الاجتماعي، ولا تريد أن تظهر بصورة أقل منهن. وأضافت: "الكل يعرف أن سارة تقترض المال كل عام لتحضير هذه المناسبة. وأنا لست مقتنعة بذلك".
تفهّمت وضعها ولم أستطع لومها لأن سهرات السحور والإفطار ذات المستوى الرفيع كالتي أعدتها سارة ليست خارجة عن المألوف في المجتمعات الخليجية خاصة في السنوات الأخيرة٬ ولا تقتصر هذه التحضيرات على النساء من الطبقات الغنية فقط.
رمضان أصبح مناسبة تمتد لشهر كامل وتتنافس فيها بعض من الفتيات والنساء في منطقة الخليج لتحضير سهرة مميزة لدرجة أن بعضهن مثل سارة يقترضن من المصارف لمواكبة المقتدرات ماديًا. كما أن البضاعة المتوفرة في الأسواق مغرية. ففي الأيام القليلة قبل رمضان تزدحم محلات الأواني وتتنافس فيما بينها لتوفير مجموعات أواني وطاولات قهوة ومفارش طاولات تناسب الشهر.
كما أن كثيرا من معارض الأثاث العالمية تطرح مجموعات أثاث حصرية صممت لرمضان من مخدات وطاولات وفوانيس.
ولا تتوقف التحضيرات لشهر رمضان عند ديكورات المنزل؛ فالقفاطين والمجوهرات لها تحضيرات خاصة ويبدأ بعضهم في التسوق لها شهرين أو ثلاثا قبل رمضان. كما أن بعض محال المجوهرات في الخليج تقبل الدفع بالأقساط أو استئجار قطع المجوهرات لمن ليست لديها القدرة المادية لدفع المبلغ كاملاً.
في الماضي، كانت دعوات حضور مناسبات الإفطار أو السحور التي أتلقّاها تقتصر على الأهل والصديقات وزميلات العمل، ولكن اليوم أتلقّى دعوات من دور أزياء٬ ومؤثرات على مواقع التواصل الاجتماعي لحضور مناسبات مختلفة في الشهر. فلا يكاد يمر يومان دون دعوة لحضور مأدبة ما.
والكل يتنافس لتقديم مناسبة مميزة٬ وبعضهم يتعاقد مع منظمي الحفلات لتحقيق ذلك - الأمر الذي دفع كثيرا من منظمي حفلات الزفاف لتوفير خدمات تنظيم مناسبات الإفطار والسحور للأفراد ووفرت هذه المناسبات مصدر دخل إضافي لهم ومصدر إلهام للذين يريدون أن يُحضّروا لمناسباتهم بطرق مشابهة.
شخصيا، لست ضد إقامة مأدبات الإفطار أو السحور أو حضورها، فلا يوجد ما هو أجمل من تجمّع الأهل والأصحاب والتواصل معهم خاصة في الشهر الفضيل. ولكنني ضد المبالغة والتبذير في الأمور بشكل عام وخاصة من قبل الأشخاص غير المقتدرين ماديًا، وهذه أصبحت ظاهرة واضحة في مجتمعاتنا الخليجية.
لماذا يقترض البعض المال في سبيل المظاهر؟
قد يكون السبب هو تأثير منصات التواصل الاجتماعي التي أتاحت للكثير دخول منازل شرائح مختلفة من المجتمع والتطلّع على مناسباتهم الرمضانية وتحضيراتها مما يخلق مقارنة ومنافسة فيما بينهم ومحاولتهم مواكبتها حتى لا يظهروا بصورة أقل من أقرانهم خاصة حين يشاركون متابعيهم على صفحات التواصل الاجتماعي صور ومقاطع الفيديو التي أصبحت أمرا لا بد منه خاصة بين فئة الشباب.

Wednesday, May 22, 2019

नितिन गडकरी की राह कितनी मुश्किल और क्या होगा विदर्भ की 10 सीटों पर: लोकसभा चुनाव 2019

2019 चुनाव में विदर्भ में क्या होगा, इसको जानने-समझने से पहले एक बात स्पष्ट है. वो बात यह है कि 2014 की तरह, इस बार विदर्भ के नतीजे शायद बहुत चौंकाने वाले नहीं हों.
2014 में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार भी गठबंधन के उम्मीदवारों को कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन पर बढ़त दिख रही है. इसकी एक वजह तो यही है कि कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन यहाँ कमज़ोर है, दोनों दलों के गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है और गुटबाज़ी का खामियाजा भी इसे भुगतना पड़ सकता है.
इस इलाके में लोकसभा चुनाव 11 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं, ऐसे में पूर्वी महाराष्ट्र की इन 10 सीटों पर चुनावी चहल-पहल तेज़ी से बढ़ने लगी है.
एक समय विदर्भ को कांग्रेस का गढ़ भी माना जाता रहा था लेकिन 2014 में मोदी लहर पर सवार बीजेपी-शिवसेना ने कांग्रेस को एक भी सीट नहीं जीतने दी.
पिछले महीने इलाके में कई जगह घूमने-फिरने और आम लोगों से बातचीत के दौरान यह तो जाहिर होता रहा है कि समाज में मोदी सरकार को लेकर नाराजगी है और लोगों का मोहभंग भी हुआ है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व वाला विपक्ष बिना ज़ोर लगाए चुनाव जीतने की स्थिति में भी नहीं दिख रहा है.
नाम गोपनीय रखने के अनुरोध के साथ पश्चिम विदर्भ से दो बार कांग्रेस के विधायक रहे एक नेता ने बताया, "चुनाव जीतने की स्थिति तो है, लेकिन मोदी और बीजेपी से लोगों के मोहभंग को हम भुना नहीं पा रहे हैं."
वहीं, दूसरी ओर, बीजेपी-शिवसेना के लिए भी 2014 की कामयाबी को दोहराना आसान नहीं होगा.
किसान नेता विजय जावांधिया कहते हैं, किसान मोदी सरकार से नाराज हैं. लेकिन पुलवामा ने किसानों के मुद्दे को गायब सा कर दिया है. कोई लहर भी नहीं है. मेरे ख्याल से जाति का गणित और स्थानीय समीकरणों की चुनावी नतीजों में अहम भूमिका रहेगी.
विजय कहते हैं, "अगर दलित, जनजातीय समुदाय और मुसलमानों ने रणनीति के साथ एकजुट होकर वोट नहीं दिया तो कांग्रेस तो कहीं जमीन पर भी नहीं है, मेरे ख्याल से बीजेपी-शिवसेना को बढ़त हासिल है."
विदर्भ में दो चरणों चुनाव है- सात लोकसभा सीटों पर 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे जबकि बाकी की तीन सीटों पर 18 अप्रैल को मतदान होगा.
बीजेपी इलाके की छह सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि चार सीटों पर शिवसेना के उम्मीदवार हैं. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस इलाके की सात सीटों पर चुनाव लड़ रही है, दो सीट पर एनसीपी के उम्मीदवार हैं और अमरावती की सीट निर्दलीय विधायक रवि राणा की पत्नी नवनीत को एनसीपी कोटे से दी गई है.
विदर्भ एक समय में कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन पार्टी के कमजोर ढांचे, क्षेत्रीय नेताओं के अभाव और गुटबाज़ी के चलते ही बीजेपी-शिवसेना ने पूरे इलाके में तेज़ी से अपनी स्थिति मजबूत कर ली.
पटोले कांग्रेस के किसान सेल के अध्यक्ष भी हैं लेकिन उनको नागपुर से टिकट दिए जाने पर स्थानीय यूनिट में नाराजगी भी देखने को मिली है. दूसरी ओर बीजेपी नितिन गडकरी की जीत को लेकर निश्चिंत है. लेकिन कांग्रेस की उम्मीद की बड़ी वजह ये है कि कांग्रेस नागपुर में कई दिग्गजों को चुनाव हरा चुकी है.
स्थानीय जातिगत समीकरणों को देखने पर यह जाहिर होता है कि इस सीट पर नितिन गडकरी के लिए जीत हासिल करना आसान नहीं रहने वाला है. नागपुर में 21 लाख मतदाता हैं, जिनमें 12 लाख दलित, मुस्लिम और कुनबी हैं. इसके अलावा बुनकर का काम करने वाले हलबा-कोष्टी समुदाय भी डेढ़ लाख के लगभग हैं. ये सब लोग बीजेपी से नाराज बताए जाते हैं और इनका साथ कांग्रेस को मिल सकता है.
कुनबी समुदाय से ही आने वाले पटोल ने कांग्रेस के सभी धड़ों के साथ नागपुर में रैली से अपनी शुरुआत की है, माना जा रहा है कि वो नितिन गडकरी को कड़ी चुनौती देंगे. हालांकि गडकरी विकास की पिच पर मौजूद हैं, ख़ासकर मार्च में उन्होंने मेट्रो रेल के एक कॉरिडोर को ऑपरेशनल बना दिया है. वे निजी तौर पर भी लोकप्रिय हैं.
रामटेक सीट को लेकर भी कांग्रेस असमंजस में रही- पार्टी कार्यकर्ता चाहते थे कि यहां पार्टी के महासचिव मुकुल वासनिक चुनाव लड़ें ( पिछले चुनाव में वे शिवसेना के क्रुपाल तुमाने से हार गए थे) लेकिन वासनिक जानते थे कि वह शायद फेवरिट नहीं हैं. रामटेक एक सुरक्षित सीट है, लेकिन यहां के दलित आंबेडकराइट और हिंदू दलितों में बंटे हुए हैं, इन दोनों के बीच ओबीसी फैक्टर संतुलन साधता है.
रामटेक के कांग्रेसी नेता (ख़ासकर पार्टी के मज़बूत नेता और विधायक सुनील केदार) का समर्थन वासनिक को नहीं मिला, ये लोग कांग्रेस के जनजातीय समुदाय के अध्यक्ष नितिन राउत को चुनाव लड़ाना चाहते थे. लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने आखिरी मौके पर यहां से किशोर गजभैइए को चुनाव मैदान में उतारा है. गजभैइए भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी हैं और बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर नागपुर (उत्तर) से 2014 में विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं.
पश्चिम विदर्भ की अमरावती, अकोला, यवतमाल-वाशिम और बुलडाना में भी दिलचस्प टक्कर देखने को मिल सकती है. हालांकि इनमें से अकोला में तिकोना मुकाबला देखने को मिल सकता है.
बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद संजय धोत्रे को चुनाव मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने भी यहां से अपने पुराने उम्मीदवार हिदायत पटेल को बनाए रखा है. दलित नेता एवं पूर्व सांसद प्रकाश आंबेडकर अपनी बहुजन वंचित आघाड़ी पार्टी से यहां चुनाव मैदान में उतर सकते हैं या फिर अपनी पत्नी को उतार सकते हैं. ऐसे में यहां मुक़ाबला तिकोना हो जाएगा.
इलाके में कोई बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं दिखता है, लगता है कि स्थानीय मुद्दे ही प्रभावी होंगे. ऐसे में आख़िरी समय में फ़ैसला लेने वाले फ्लोटिंग मतदाता और निचली जातियों के मतदाताओं का वोट यहां निर्णायक होने वाला है.
विदर्भ भी पूर्व और पश्चिम में बंटा हुआ है. ज़रूरी नहीं है कि पूर्व में धान की खेती करने वाले किसान पांच जिलों में उसी तरह मतदान करें जिस तरह से पश्चिम में कपास उगाने वाले किसान करेंगे.
प्रचंड सूखा, आर्थिक तंगी, सरकार के वादों का पूरा नहीं होना और बढ़ती बेरोजगारी- ये वो मुद्दे हैं जिसके चपेट में ग्रामीण विदर्भ के लोग फंसे हुए हैं. लेकिन ऐसा लग नहीं रहा है कि जब वे लोग मतदान करने निकलेंगे तो वे बड़ा बदलाव लाने के लिए वोट देंगे. नौ मौजूदा सांसद चुनाव मैदान में होंगे- तीन शिवसेना के और छह बीजेपी के उम्मीदवार.
2014 में बीजेपी की टिकट पर चुनाव जीतन वाले नाना पटोले कांग्रेस के खेमे में लौट चुके हैं और नागपुर में वे बीजेपी के दिग्गज नेता और केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को चुनौती दे रहे हैं.

Friday, May 17, 2019

رواية الخيال العلمي التي تنبأت بالمستقبل بدقة عجيبة

قد نلجأ إلى القصص الخيالية إما بحثا عن الحقائق الخالدة عن العالم أو التحليل العميق للحالة الإنسانية الذي يصلح لكل الأزمنة، أو ربما هربا من الواقع. لكن الروائي أحيانا، لكي يحقق ذلك، يتخذ من المستقبل مسرحا ويتنبأ بأحداث تتحول إلى واقع ملموس.
وقد يرسم الروائي صورة صحيحة لطرق السفر والراحة وحتى التواصل في المستقبل. وفي هذا الصدد، تميزت تصورات الروائي جون برانر بدقة بالغة، وهو مؤلف الخيال العلمي الذي نشأ في عصر كانت فيه كلمة "لاسكلي" مرادفا للمذياع.
ففي روايته "الوقوف في زنجبار" التي نشرت عام 1968، كتب وصفا دقيقا للحياة في عام 2010، إذ تنبأ بظهور أجهزة إلكترونية يمكن ارتداؤها، والفياغرا، والمحادثات المرئية، وزواج المثليين، وتقنين القنب (الحشيش)، وحتى انتشار حوادث إطلاق النار الجماعي.
وُلد جون كيليان هوستون برانر عام 1934 في مقاطعة أوكسفوردشير، وبدأ اهتمامه بالخيال العلمي في سن السادسة. وعندما اندلعت الحرب العالمية الأولى انتقلت عائلته إلى هيرتفوردشير، حيث اعتزم أبوه تخصيص ريع مزرعة يمتلكها لدعم جهود الحرب.
وعثر برانر في أعقاب الانتقال إلى هيرتفوردشير، على نسخة نادرة من رواية "حرب العوالم" لهربرت جورج ويلز، كان جده يمتلكها، وقرأها برانر بنهم شديد.
وفي سن التاسعة، شرع في كتابة قصص الخيال العلمي، ولم يكن قد تجاوز 17 عاما عندما نشرت له قصة قصيرة بعنوان "المراقبون"، ونجح في بيع أول قصة لمجلة أمريكية قبل أن يبلغ 18 عاما، وحينها ترك الدراسة في مدرسته الخاصة ورفض منحة دراسية من جامعة أوكسفورد ليتفرغ للكتابة.
لكن الخوف من الفشل ظل يلاحقه. وفي السنوات التالية، دأب على كتابة قصص كان بعضها يحوز على جوائز مرموقة، وبعضها يفشل فشلا ذريعا. وكان يكتب بأسماء مستعارة، حتى يتمكن من المشاركة بالكثير من القصص لمجلة الخيال العلمي "ساينس فانتاسي". ونشرت له أكثر من 80 رواية وقصة قصيرة.
وفي مستهل العشرينيات، التقى برانر زوجته مارجوري ساوير، التي كانت مطلقة وتكبره بـ 14 عاما، ولعبت دورا كبيرا في نجاحه المهني، إذ لم تكن مديرة أعماله فحسب، بل كانت تعمل أيضا في البستنة لدعمه ماليا. وبالرغم من أن برانر يزعم أنه باع نحو مليوني نسخة من كتبه حول العالم عندما بلغ 30 عاما، فإن النفقات المعيشية كانت تمثل دائما هاجسا يؤرق كتّاب الخيال العلمي.
وكتب برانر أيضا شعرا وبعض قصص الخيال العلمي والرعب وحتى قصص الإثارة الجنسية، لكنه كان يفضل كتابة روايات الخيال العلمي لأنه كان يرى أنها تساعد على توسيع مدارك العقل.
جاءت أفضل كتابات برانر حافلة بالأفكار، تناول فيها بعض القضايا الرئيسية في عصره، من الذكاء الاصطناعي إلى التمييز العنصري والإدمان والبيئة والسفر عبر الفضاء والأسلحة المتطورة في الحروب. وكان برانر وزوجته من أوائل المشاركين الناشطين في حملة للمطالبة بنزع الأسلحة النووية.
وكان يثري خياله الخصب بقراءة الدوريات العلمية، مثل "نيو سوسايتي" و"نيو ساينتست"، وبينما تبدو بعض تنبؤاته الآن كعبارات هزلية، فإن البعض الآخر تحقق بصورة غريبة. فقد وصف ببراعة في روايته "استمع! إنها النجوم"، في عام 1962 جهازا محمولا، يشبه الأجهزة الإلكترونية في الوقت الحالي، وتؤدي كثرة استخدامه إلى الإدمان.
وفي عام 1972، نشر برانر واحدة من أكثر رواياته تشاؤما "الغنم تتطلع لأعلى"، التي تنبأ فيها بوقوع كارثة بيئية ووصول نسب التلوث في العالم إلى مستويات بالغة الخطورة. وفي روايته "راكب موجات الصدمة"، في عام 1975، وصف برانر قرصان الكمبيوتر، الذي لم يكن معروفا آنذاك، وتصور ظهور فيروسات الكمبيوتر، في الوقت الذي استبعد علماء الكمبيوتر ظهورها تماما، وصاغ مصطلح "دودة" لوصف الفيروسات.
حظيت أعمال برانر بإشادة الكثير من النقاد، الذين أثنوا على إبداعه وسرده الذكي ودقة أطروحاته الفلسفية. ونال جميع جوائز روايات الخيال العلمي تقريبا، منها جائزة هيوغو لأفضل رواية خيال علمي، التي لم يحصل عليها بريطاني قبله.
لكن برانر ظل يشكو من تدخل مقص الرقيب، واشتهر بأنه عصبي المزاج بسبب تركيزه على فكرة الازدحام وضيق المساحات في رواياته. وبعدما تجاوز منتصف الأربعين، رفضت دور النشر في المملكة المتحدة نشر الكثير من أعماله، واضطر لبيع منزله في لندن والانتقال إلى سامرست، وتردت حالته الصحية وحزن حزنا شديدا لوفاة زوجته مارجوري في عام 1986.
واليوم قد لا يعرف اسم برانر إلا عشاق الخيال العلمي، ولعل أشهر رواياته هي "الوقوف في زنجبار"، وهي من روايات الخيال العلمي المرعبة، وتصف جهود العالم للتصدي للتضخم السكاني.
وذكر برانر أن عدد سكان العالم في عام 2010 سيفوق سبعة مليارات نسمة- وهذا ما حدث بالفعل لكن في عام 2011، وواجهت الحكومات، في الرواية، الانفجار السكاني بقوانين عالمية شديدة الصرامة لتحسين النسل، وتطويع الجينات لتحديد الأشخاص الذين يحق لهم الإنجاب دون غيرهم.
وتسلط الرواية الضوء على شخصية دونالد، الجاسوس المتخفي في صورة شخص مولع بالفنون، ونورمان، الرئيس التنفيذي في إحدى الشركات وينحدر من أصول أمريكية وأفريقية، ويعيش كلاهما في شقة في مدينة نيويورك.
وتدور الأحداث حول خطة دولية سياسية تحاك لاستغلال اكتشاف جديد أطلق عليه "التكنولوجيا الوراثية"، أي استخدام الهندسة الوراثية للحصول على نسل مثالي.
وفي الوقت نفسه يستشري التطرف، وتنتشر حوادث القتل الجماعي، وتسود العصبية الحزبية، وينتهج الكثير من المتطرفين العنف دفاعا عن عقائدهم الدينية. ويمسك بمقاليد الأمور في هذا العصر أول كمبيوتر يصنف بأنه "أكبر دماغ اصطناعي"، وظهرت شبكة اجتماعية تتيح للمؤسسات الإعلامية نشر آخر الأخبار وتلقي تعليقات من الأعضاء بشكل فوري.
وانقسمت آراء النقاد بشأن الرواية عند نشرها، إذ ذكر البعض أن رواية زنجبار هي جزء من موجة جديدة في الخيال العلمي، يطغى فيها الأسلوب على المحتوى. وعندما نشر مقتطف منها في مجلة "نيو ويرلدز" في نوفمبر (تشرين الثاني) 1967، علق رئيس التحرير بأنها أول رواية تصف بأدق التفاصيل "مجتمع محتمل في المستقبل".
وتوقع برانر أن الولايات المتحدة ستتوصل إلى نظام ملائم وغير باهظ لاتاحة الرعاية الصحية للجميع بحلول عام 2010، علاوة على بعض التنبؤات المكررة في معظم روايات الخيال العلمي، مثل البنادق التي تطلق صواعق، ومعسكرات التعدين في أعماق البحار، وقواعد على سطح القمر.
بيد أن المجتمع الذي تصوره برانر في رواية زنجبار، يشبه من عدة نواح مجتمعنا الحالي. إذ تخيل برانر قيام مؤسسة قريبة من الاتحاد الأوروبي، وتوقع أن تكون الصين هي المنافس الأكبر للولايات المتحدة، وتنبأ بوجود هواتف تتصل بموسوعة، على شاكلة ويكيبيديا، وبوجود طابعات ليزر، وبأن مدينة ديترويت ستتدهور وتصبح مدينة مهجورة وحاضنة لنوع جديد من الموسيقى التي تشبه بشكل عجيب الموسيقى الإلكترونية التي انتشرت في ديترويت في التسعينيات من القرن الماضي.