Monday, July 30, 2018

बीमार करुणानिधि को लेकर मेडिकल बुलेटिन जारी

उन्होंने डीएमके कार्यकर्ताओं से शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील भी की है.
स्टालिन ने कहा है, "मैं कार्यकर्ताओं से अपील करता हूं कि वो हिंसा नहीं करें, पुलिस के काम में बाधा न डालें और आम लोगों को परेशान नहीं करें."
94 साल के करुणानिधि लंबे समय से बीमार चल रहे थे. 28 जुलाई को तड़के 1.30 बजे उन्हें चेन्नई के कावेरी अस्पताल में दाखिल कराया गया. डॉक्टरों के मुताबिक उनका ब्लड प्रेशर कम हो गया था और उन्हें उपचार के लिए आईसीयू में रखा गया.
अस्पताल में दाखिल कराए जाने के पहले तक चेन्नई के गोपालपुरम स्थित आवास में उनका इलाज किया जा रहा था.
रविवार को करुणानिधि की सेहत की फिक्र में उनके परिजन के अलावा बड़ी संख्या में प्रशंसक अस्पताल के बाहर जमा हो गए.
अस्पताल की ओर से जारी बुलेटिन में बताया गया है, "डीएमके अध्यक्ष और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. एम करुणानिधि के स्वास्थ्य में गिरावट आई थी. चिकित्सा सहायता से उनकी स्थिति सामान्य हो रही है."
अस्पताल ने ये भी बताया है कि विशेषज्ञ डॉक्टरों का दल 'उनकी निगरानी कर रहा है और उन्हें उपचार दे रहा है.'
तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि के स्वास्थ्य पर चेन्नई के एक अस्पताल के विशेषज्ञ डॉक्टर नज़र बनाए हुए हैं. करूणानिधि को दो दिन पहले गंभीर स्थिति में अस्पताल में दाखिल कराया गया था.
कावेरी अस्पताल की ओर से रविवार रात 9.50 बजे जारी मेडिकल बुलेटिन के मुताबिक उनकी 'स्थिति सामान्य' हो रही है.
पटवारी को तो हमेशा अपनी ताक़त का एहसास था ही. उसे मालूम था कि अगर उसकी कृपा नहीं हुई तो तहसील की फ़ाइल जाम की जा सकती है. पर पिछले कई दशकों में पहली बार किसी प्रधानमंत्री को अपनी ताक़त का एहसास हुआ है बल्कि वो मंच से ऐलान भी करता है कि हमारे पास "इरादा भी है और ताक़त भी".
जो बात पटवारी को सरकारी ओहदे के कारण मालूम थी अब पूर्ण बहुमत वाले प्रधानमंत्री को भी उस ताक़त का एहसास हो गया है. वरना मोदी से पहले खिचड़ी सरकारें चलाने की थकावट तमाम प्रधानमंत्रियों के चेहरे पर नज़र आती थी.
ख़ैर है कि अपना अब तक किसी प्रधानमंत्री से कोई वास्ता नहीं पड़ा. दूर-दूर से देखा-देखी तो वीपी सिंह, एचडी देवेगौड़ा, पीवी नरसिंहाराव से ज़रूर हुई है मगर उस ज़ोन की दीवार को हम जैसे पत्रकार कभी भेद ही नहीं पाते जहाँ प्रधानमंत्री पास बिठाकर पूछें कि कैसे हो?
पर एक पटवारी ने एक बार इस क़दर छकाया और थकाया कि आज तक उसका ख़्याल आने पर साँस चढ़ने लगती है.
पर पटवारी से पहले बात प्रधानमंत्रियों के स्नेह-ज़ोन की जहाँ तक पहुँचने के लिए बहुत पहले से मशक्कत करनी पड़ती है. ऐसे नेताओं के बरामदों में बैठकर घंटों इंतज़ार करना पड़ता है जिनमें प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएँ देखी जा रही होती हैं. 'देशवासियों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे' टाइप के सवालों से भरपूर इंटरव्यू करने पड़ते हैं, ये साबित करना पड़ता है कि हम आप ही की कोटरी के हैं, ग़ैर ना समझ लेना.
कई नामचीन पत्रकारों को आप आज भी प्रभावशाली नेताओं के बरामदे में इंतज़ार करते हुए देख सकते हैं.
किसी दौर में अटल बिहारी वाजपेयी के घर फ़ोन करना होता था तो वो आसानी से फ़ोन पर आ जाते थे और खुल कर बात करते थे. कभी किसी सभा-समारोह में मिल जाते थे तो ठठा कर हँसते, और कई बार सीधा सवाल पूछने पर तुनक भी जाते थे.
तुनके वो तब थे जब वो लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से 1999 के आम चुनावों में पर्चा दाख़िल करने गए थे. उस दौर में भी बीजेपी के कुछ बयानवीर महात्मा गाँधी को निशाने पर ले लिया करते थे. ऐसे ही किसी नेता ने कह दिया कि भारत का कोई राष्ट्रपिता नहीं हो सकता.
पर्चा दाख़िल करके निकल रहे प्रधानमंत्री वाजपेयी को भीड़ के बीच रोककर मैंने यही सवाल पूछ लिया. एक बार उन्होंने ही तो कहा था कि गाँधीवादी समाजवाद बीजेपी की विचारधारा है. हिंदुत्व, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जैसे शब्द तब फ़ैशन में नहीं आए थे. इसलिए जब उन्हीं की पार्टी के लोग कह रहे हों कि भारत का कोई राष्ट्रपिता नहीं हो सकता तो सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए था.
सवाल पर वो अचकचाए फिर दो पल को आँखें बंद करके बोले - जब देश का राष्ट्रपति हो सकता है तो राष्ट्रपिता होने में क्या बुराई है?

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